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10वें विश्व चैम्पियन बोरिस स्पास्की का निधन : श्रद्धांजलि

by Niklesh Jain - 01/03/2025

10वें विश्व चैम्पियन रूस के बोरिस स्पासकी का निधन हो गया है ।1937 में जन्मे  बोरिस का 88 वर्ष की उम्र में निधन होने की जानकारी एक दिन पहले सामने आई । 1969 में अपने दूसरे प्रयास में उन्होने उस समय के विश्व चैम्पियन तिगरान पेट्रोसियन को पराजित करते हुए विश्व खिताब हासिल किया था । दो बार के सोवियत यूनियन चैम्पियन रहे बोरिस स्पासकी नें 7 बार रूस तो 3 बार फ्रांस के लिए शतरंज ओलंपियाड में भाग लिया और अपने बेहतरीन रिकॉर्ड के लिए जाने गए । 18 साल की उम्र में ग्रांड मास्टर का खिताब अपने नाम करने वाले स्पासकी नें 19 साल में पहली बार कैंडिडैट में जगह बनाई तो 30 साल की उम्र में विश्व चैम्पियन बनने का गौरव हासिल किया । 11वें विश्व चैम्पियन बॉबी फिशर के साथ उनकी विश्व चैंपियनशिप को इतिहास की सबसे ज्यादा प्रसिद्ध विश्व चैंपियनशिप माना जाता है । बोरिस स्पासकी के निधन पर हिन्दी चेसबेस इंडिया की श्रद्धांजलि । 



10वें विश्व शतरंज चैम्पियन बोरिस स्पास्की के निधन की दुखद खबर!

हमें यह बताते हुए गहरा दुख हो रहा है कि दसवें विश्व शतरंज चैंपियन, बोरिस स्पास्की, का 88 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।

बोरिस स्पास्की का जन्म 1937 में लेनिनग्राद में हुआ था और बचपन से ही वे शतरंज के विलक्षण प्रतिभाशाली खिलाड़ी के रूप में पहचाने गए। उन्होंने मात्र 18 वर्ष की उम्र में ग्रैंडमास्टर की उपाधि प्राप्त की और 19 वर्ष की उम्र में 1956 के कैंडिडेट्स टूर्नामेंट (एम्स्टर्डम) में पदार्पण किया। हालांकि, शुरुआती असफलताओं के कारण वे अगले दो विश्व चैंपियनशिप चक्रों में जगह नहीं बना सके, लेकिन आठ साल बाद उन्होंने फिर से खिताब के लिए अपनी यात्रा शुरू की।

1965 में उन्होंने कैंडिडेट्स मैचों में केरिस, गेलर और ताल को हराकर 1966 में तिग्रान पेट्रोसियन को चुनौती देने का अधिकार प्राप्त किया। हालांकि, मास्को में हुए इस मुकाबले में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

लेकिन तीन साल बाद, 1969 में मास्को में ही पुनः हुए रीमैच में उन्होंने पेट्रोसियन को 12½–10½ के स्कोर से हराकर विश्व शतरंज चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया।

स्पास्की 1972 तक विश्व चैंपियन रहे, लेकिन फिर उन्हें बॉबी फिशर के हाथों रेक्जाविक में हार का सामना करना पड़ा। यह मुकाबला शतरंज इतिहास का सबसे प्रतिष्ठित और चर्चित मैच बना।

इस मुकाबले को 'शताब्दी का मैच' कहा जाता है, क्योंकि यह शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के बीच प्रतिद्वंद्विता का प्रतीक था। इस मैच की पुरस्कार राशि रिकॉर्ड तोड़ते हुए $250,000 तक पहुंच गई थी, जो उस समय अन्य खेलों की तुलना में कहीं अधिक थी। इस महाकाय आयोजन को 50 मिलियन लोगों ने देखा था, और यह मुकाबला कुल 21 गेम तक चला, जिसमें बॉबी फिशर ने 12½–8½ से जीत दर्ज कर विश्व चैंपियन का खिताब अपने नाम किया। इस जीत के बाद शतरंज को विश्वभर में अभूतपूर्व लोकप्रियता मिली।

स्पास्की ने इसके बाद भी उच्च स्तर पर खेलना जारी रखा। उन्होंने 1974 में कैंडिडेट्स सेमीफाइनल और 1977 में फाइनल तक का सफर तय किया।

वह दो बार सोवियत संघ के शतरंज चैंपियन (1961 और 1973) भी रहे और 1962 से 1978 तक सात ओलंपियाड्स में सोवियत टीम का प्रतिनिधित्व किया। इस दौरान उन्होंने 13 पदक जीते और 94 मैचों में 69 अंक बनाए (45 जीत, 1 हार, 48 ड्रॉ)।

स्वतंत्र विचारों वाले और सच्चे शतरंज कलाकार स्पास्की को सोवियत प्रणाली ने हमेशा एक बंधन में बांधने की कोशिश की। 1976 में वे अपनी तीसरी पत्नी के साथ फ्रांस चले गए, 1978 में उन्होंने फ्रांसीसी नागरिकता ग्रहण की और फिर 1984 से 1988 तक तीन ओलंपियाड में फ्रांस के लिए बोर्ड 1 पर खेला। 2012 में वे पुनः रूस लौट आए।

स्पास्की को पहला 'यूनिवर्सल' खिलाड़ी माना जाता है। वे विशिष्ट ओपनिंग विशेषज्ञ नहीं थे, लेकिन जटिल और गतिशील मिडिलगेम स्थितियों में वे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में सक्षम थे।बोरिस स्पास्की का निधन शतरंज जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनकी यादें, उनका खेल और उनकी विरासत हमेशा हम सभी के दिलों में जीवित रहेगी।शतरंज प्रेमियों की ओर से उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि!

देखे हिन्दी चेसबेस इंडिया का यह विडियो : 

 




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